श्री जयदेव ई.पी. ने विश्वेश्वरय्या कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक डिग्री प्राप्त की एवं आईआईटी मद्रास से एयरक्राफ्ट प्रोडक्शन इंजीनियंरिंग में मास्टर्स किया ।
इन्होंने वर्ष 1987 में मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) में कार्यभार ग्रहण किया तथा इनके पास विनिर्माण, एसेंब्ली, ओवरहॉल, उन्नयन, ग्राहक सहायता, स्वदेशीकरण एवं अन्य प्रबंधन कार्यों में लगभग 33 वर्षों का अनुभव है । इन्होंने ओवरहॉल प्रभाग, एयरक्राफ्ट प्रभाग, एलसीए तेजस प्रभाग एवं मुख्यालय जैसे विभिन्न प्रभागों/ कार्यालयों में कार्य किया । इनको नए लड़ाकू विमान के विनिर्माण, ओवरहॉल एवं अपग्रेड संबंधी परियोजना के प्रारंभ से लेकर निष्पादन चरण तक अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका के लिए जाना जाता है । नैगम योजना (कॉरपोरेट प्लानिंग) में अपने कार्यकाल में इन्होंने कंपनी की भावी योजनाओं को तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है । इन्होंने ओवरहॉल प्रभाग में किरण, हॉक एवं मिराज विमान हेतु रिपेयर एवं ओवरहॉल एवं उन्नयन सुविधाओं की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की । इन्होंने ओवरहॉल एवं अपग्रेड श्रृंखलाओं के लिए अधिक मूल्य ग्राउंड सपोर्ट एक्विपमेंट/ ग्राउंड हैंडलिंग एक्विपमेंट को स्वदेशी रूप से विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी । इन्होंने एचएएल के दो (2) संयुक्त उद्यमों के लिए निदेशक के रूप में सेवा भी की है ।
निदेशक (प्रचालन) के रूप में कार्यभार ग्रहण करने से पूर्व, श्री जयदेव महाप्रबंधक, एलसीए तेजस प्रभाग, बेंगलूर के रूप में कार्यरत थे । उनके कार्यकाल के दौरान, प्रभाग ने सतत रूप से विकास किया एवं वर्ष 2021-22 के दौरान 8 विमानों के उत्पादन को प्राप्त किया । इन्होंने भारतीय उद्योगों से संरचनात्मक एसेंब्ली के स्ट्रैटेजिक आउटसोर्सिंग के साथ महत्त्वपूर्ण कदम उठाया था, जिससे आगे विकास के लिए सहायता मिली । इन्होंने हलका लड़ाकू विमान (एलसीए) के संबंध में प्रतिवर्ष 16 विमानों तक उत्पादन दर को दुगुना करने के लिए उत्पादन गुणवत्ता संवर्धन पहल एवं क्षमता संवर्धन प्रक्रियाओं को प्रारंभ किया एवं एलसीए के लिए सफलतापूर्वक द्वितीय उत्पादन की स्थापना की ।
श्री जयदेव ने फरवरी 2021 के दौरान भारतीय वायुसेना (आईएएफ) से 83 एलसीए एमके 1ए संविदा को अंतिम रूप प्रदान करने के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया । इस संविदा को बृहत “मेक इन इंडिया” रक्षा संविदा के रूप में पहचाना गया एवं यह भारत में रक्षा पारिस्थितिकी की वृद्धि में सहायक होगी ।
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